आज मैं आप सबके समक्ष हिंदी-तेलुगु तेलुगु-हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय से संबंधित कुछ बातें साझा करना चाहूँगी।
हम सब जानते हैं कि भारत एक बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक देश है। भौगोलिक रूप से हमारे बीच दूरियाँ बहुत हैं, लेकिन भावात्मक एकता के धरातल पर हम सब एक हैं। मेरे कहने का आशय है कि उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम के राज्यों में भले ही भौगोलिक दूरी हो सकती है, और है भी – इन भौगोलिक दूरियों के बावजूद यह पूरा देश भावात्मक रूप से एक सूत्र में जुड़ा हुआ है। इस भावात्मक एकता का नाम ही है भारतीयता – Indianness।
विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक समझ और आदान-प्रदान के लिए अनुवाद की आवश्यकता है। सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्राचीन और मध्यकालीन भाषाओं से अनुवाद द्वारा स्वयं को समृद्ध करने की परंपरा रही है। ‘हिंदी-तेलुगु तेलुगु-हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय’ अपने आप में एक व्यापक शोध का विषय है। इसे दस या बीस मिनट में समेटना अत्यंत दुरूह एवं चुनौतीपूर्ण कार्य है। फिर भी मैं प्रयास करूँगी। सीमित समय में बस सूची मात्र प्रस्तुत किया जा सकता है पर मेरा उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ नाम गिनाना मात्र नहीं है।
तेलुगु साहित्य के हिंदी अनुवाद की परंपरा और प्रदेय की बात करूँ तो सत्रहवीं शती से ही यह दिखाई देती है और पता चलता है कि तेलुगु में संस्कृत, पालि, प्राकृत व अपभ्रंश से बड़ी मात्रा में अनुवाद किए गए रामायण, महाभारत, अभिज्ञान शकुंतलम् आदि उपलब्ध हैं। तेलुगु से भी हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में अनेक रचनाओं का अनुवाद हुआ है।
आइए! तेलुगु-हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय के बारे संक्षिप्त रूप में जानने का प्रयास करेंगे।